म.प्र. के पन्ना जिले की सामान्य साधनहीन शाला से रेखांकित शाला बनने तक की कहानी


 
तारा गांव की शाला (पन्ना)
 
 
ज बात करते है एक ऐसे स्कूल की जिसे देखकर कई बार लोगों को यकीन नहीं होता कि यह कोई शासकीय शाला है । इसको देखकर यह कहना बिलकुल भी गलत नहीं होगा कि यह आज जिले की आदर्श शाला है । जी हाँ,  हम बात कर रहे हैं प्राथमिक शाला ‘तारा’  की । तारा ग्राम जो पन्ना जिले मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक छोटा सा गाँव है । यह आदर्श शाला के कारण जिले में चर्चा का विषय बना हुआ है । एक सामान्य साधनहीन शाला से जिले की रेखांकित शाला बनने तक की कहानी मूलतः दो शिक्षकों श्रीमती वर्षा वर्मा एवं श्री अमित परमार जी के आसपास घूमती है। 

बात जुलाई 2015 की है जहाँ से शाला ने अपने उत्थान की इबारत लिखना शुरु की। हुआ कुछ इस तरह कि युक्तियुक्तकरण नीति के अन्तर्गत ग्राम झरकुआ के शासकीय हाईस्कूल के अध्यापक श्री अमित परमार एवं अध्यापिका श्रीमति वर्षा वर्मा का स्थानान्तरण ग्राम तारा की शासकीय प्राथमिक शाला में हो गया। पदभार संभालते ही शिक्षकों ने इस वास्तविकता को जाना कि शासकीय अभिलेख में दर्ज इस शाला की पहचान अपने ग्राम तारा तक में भी नहीं है… इस गांव के जो विद्यार्थी शाला में पढने आ रहे हैं उनके पास गणवेश तो दूर की बात लेकिन  पूरे वस्त्र तक नहीं थे । वास्तविकता तो यह थी कि आधे - अधूरे, फटे पुराने कपड़ों में शाला आने वाले विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने नहीं बल्कि मध्यायन भोजन के लिये शाला में आते थे। शिक्षकों ने यह भी महसूस किया कि जिस तरह शाला संचालित हो रही है, वह एक नाममात्र की शाला है और शासन का उद्देश्य नाम मात्र की पाठशाला का संचालन नहीं है, बल्कि बच्चों को शिक्षित, संस्कारित और आत्मनिर्भर बनाना है। ताकि सर्वजन हितकारी उपक्रमों में उनकी भी सहभागिता हो। स्थितियां प्रतिकूल थीं, शिक्षकों के सामने एक कठिन चुनौती थी। उन्होंने महसूस किया कि हम शिक्षक हैं सरकार ने हमारी नियुक्ति किसी उद्देश्य से की है। विद्यार्थी हमें गुरूजी कहते और मानते हैं। हम स्वयं विद्यार्थियों को चुनौती का सामना करने के लिए प्रेरित करते हैं। अतः हमें भी शाला को शाला बनाने की चुनौती, शाला को शासन के उद्देश्य के अनुरूप चलाने की चुनौती स्वीकार करना होगी। इसी विचार मंथन में शिक्षकों को अपने कर्तव्य कर्म का बोध हुआ। और वे अपने दायित्व निर्वहन के लिए प्रेरित हो गए। इसी बीच उनकी मुलाकात समावेश संस्था के साथी दिलीप अहिरवार और सालागराम योगी जी से हुई।  जिनके साथ मिलकर उन्होंने शाला के उन्नयन के लिए एक कार्ययोजना बनाई और उस पर क्रियान्वयन करना प्रारंभ कर दिया। कार्ययोजना के केन्द्र में उन्होंने इस बिन्दु को रखा कि शाला आने में बच्चों के मन में उमंग हो, रूचि हो तथा अभिभावक की भी बच्चों को शाला भेजने में सकारात्मक भागीदारी हो। उन्होंने सबसे पहले बच्चों को शाला आने में रूझान उत्पन्न करने के लिए उपहार योजना शुरू की। सभी विद्यार्थियों को गणवेश दिए, शीतकाल के लिए ऊनी कपड़े दिए। गणवेश और ऊनी वस्त्र पाकर विद्यार्थियों के चेहरे पर खुशी के भाव आ गए।  और वे शाला में रूचि लेने लगे। शाला आने के बाद विद्यार्थी शाला में रूकें, इसके लिए शिक्षकों ने शाला को खेल के मैदान में बदला। खेल के मैदान के साथ कक्षाओं में भी बच्चों का मन लगे इसके लिए टाट-पट्टी की व्यवस्था की गयी, पुराने फर्नीचर को नया रूप दिया गया। विद्यार्थियों को पढ़ने और लिखने में सुविधा हो इसके लिए पुराने फर्नीचर से छोटी-छोटी डेस्क बनाई गयी। अध्ययन कक्ष की दीवारों पर गिनती, वर्णमाला और प्रेरक चित्र बनाए गए, नृत्य और गीत को पढाई में शामिल किया गया। विद्यार्थी स्वप्रेरणा से लेखन में रूचि लें, इस उद्देश्य से दीवारों पर छोटे-छोटे ग्रीन बोर्ड बनवाए गए। विद्या की देवी माँ सरस्वती का मंदिर स्थापित कर प्रतिदिन प्रार्थना से शाला की शुरूआत प्रारंभ की गयी। शिक्षकों और अभिभावकों की संयुक्त पहल रंग लायी। सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे। साफ, स्वच्छ कक्ष और शाला प्रांगण, शाला  में टाट-पट्टी, ग्रीन बोर्ड और प्यार भरा मार्गदर्शन पाकर जहां विद्यार्थी स्व-अनुशासन से पढ़ने में रूचि लेने लगे। वहीं दूसरी ओर शाला का वातावरण भी शिक्षामय हो गया। शाला का वातावरण तो शिक्षामय हो गया लेकिन अभी भी बच्चों में झिझक, डर जैसी दिक्कतें थी । शिक्षकों, बच्चों व समुदाय के बीच न चाहते हुए भी एक लकीर नजर आ रही थी। इस लकीर को हटाने का काम समावेश के साथियों ने किया उन्होंने  शिक्षकों के साथ नयी कार्ययोजना बनाई । जिसमे समुदाय को भी शामिल किया गया। बच्चों के बीच दोस्ताना व्यव्हार बनाने के लिए कवितायेँ, कहानी पूरे हाव-भाव के साथ करवाई गई । जिससे बच्चों में झिझक और डर समाप्त होने लगा। लगातार SMC बैठक समावेश के साथ की गयीं जिससे अभिभावकों का भी शाला से जुड़ाव हुआ।  शाला में समावेश संस्था की ओर से एक पुस्तकालय की स्थापना की गयी और उसके माध्यम से प्रेरक साहित्य उपलब्ध कराया गया व शिक्षकों के द्वारा बच्चों के समूह बनाकर पुस्तकालय का नियमित इस्तेमाल शुरू हुआ।  समावेश के साथियों के साथ मिलकर शिक्षकों ने कुछ शैक्षणिक सामग्री भी तैयार की जिसमे बच्चों को भी शामिल किया गया ऐसा माहौल देखकर बच्चों का शिक्षकों के प्रति व शिक्षकों का बच्चों के प्रति दोस्ताना माहौल तैयार हुआ।  जिससे आगे के रास्ते आसान होते चले गए। बाल सभा के माध्यम से राष्ट्रीय पर्व और अन्य प्रसंगों पर सभा आयोजित करना प्रारंभ की गयी। बाल सभा का संचालन भी बच्चों से कराना शुरू किया। परिणाम हुआ कि हीरों की नगरी पन्ना में ग्राम तारा की शाला भी हीरों के समान चमकने लगी।
शाला प्रगति की दास्तां से रूबरू होने के लिए एक नजर पूर्व पर डालना भी उचित होगा। जब यहाँ श्री अमित परमार और श्रीमति वर्षा वर्मा यहाँ आये तो शाला कि स्थिति बड़ी दयनीय थी। यहाँ सत्र 2015-16 में छात्र संख्या केवल 19 थी, जिसको देख श्री परमार एवं श्रीमति वर्मा को बड़ी निराशा हुई। बच्चों  को शाला में प्रवेश दिलाने के लिए उन्होंने समुदाय में जाकर संपर्क किया, लेकिन वहां से भी उनको कुछ खास प्रतिक्रिया नहीं मिली। समुदाय में जाने पर उन्हें समझ आया की समुदाय का सरकारी स्कूलों के प्रति बुरा नजरिया था। समुदाय में उनको यह भी सुनने को मि
ला कि “साहब दो रोटी कम खा लेंगे लेकिन बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाएंगे|” श्री परमार एवं श्रीमति वर्मा के साझा प्रयास से आज शाला में छात्रों की दर्ज संख्या19 से बढ़कर 57 हो गई है। जिसमे से 20 छात्र अनुसूचित जाति के, 2 छात्र अनुसूचित जनजाति के, 32 पिछड़ा वर्ग एवं 3 छात्र सामान्य वर्ग के हैं |

 

कर्तव्य निष्ठा से इस शाला में बचपन संवर रहा है। निःसंदेह यह अनूठा स्कूल है। इसकी किसी स्कूल से कोई तुलना नहीं है। यह दो शिक्षकों के सद्प्रयास की सफलता की कहानी है, जिससे पाठशाला की छवि इतनी निखर गयी कि सम्पन्न घरों के बच्चे भी प्रायवेट स्कूल छोड़ कर इस शाला में प्रवेश ले रहे हैं। सच भी यही है कि निरंतर और सतत प्रयास ही सफलता के मूल आधार है।

(दीपक अहिरवार - समावेश, पन्ना)
 





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