कोविड के समय बच्चों की पढ़ाई कैसे हो ?

साल 2020, कोविद-19 के कारण मार्च से स्कूल बंद होने से बच्चों की शिक्षा के लिए सरकार द्वारा नई पहल की गयी| अब शिक्षक घर-घर जा कर बच्चों से संपर्क करते हैं और उन्हें मोबाइल से पढ़ने की सामग्री भेजते हैं। यह बहुत चुनौतीपूर्ण काम है क्योंकि कई माता-पिता काम पर निकल चुके होते हैं और बच्चों को बस्तियों में ढूंढना मुश्किल होता है। अधिकांश बच्चे कई कारणों से अध्ययन सामग्री का उपयोग नहीं कर पाते हैं। आमतौर पर बच्चों को मोबाइल उपलब्ध नहीं होता और जब परिवार में मोबाइल होता है, तो वह भी अक्सर पिता के साथ काम पर निकल जाता है। 

मीरानगर बस्ती - टीचर सीमा सोमकुमार

इन सब चुनौतियों के दरमियान कुछ सकारात्मक संकेत भी मिलते हैं। शिक्षक अभिभावकों तक पहुंच रहे हैं और उनसे बातचीत कर रहे हैं। माता-पिता भी चिंतित हैं कि बच्चों की पढ़ाई नहीं हो रही और बच्चों ने जो भी सीखा था वह भूल जायेंगे। गरीब परिवारों में पालक अक्सर अर्ध-साक्षर होते हैं और पढ़ाई में बच्चों की मदद नहीं कर पाते। लेकिन अपने बच्चों के लिए उनकी चिंता बहुत रहती है। विशेष रूप से हम ने पाया कि मातायें जो बच्चों के साथ अधिक समय लगाती हैं नये तरीके सीखने को तैयार हैं। 

कुछ बस्तियों में बच्चों को पढ़ाने के लिये भोपाल टीम ने छोटे छोटे मोहल्ला केन्द्र शुरू करे हैं, जिस में बड़ी कक्षाओं की स्थानीय लड़की या लड़के पढाते हैं। बेशक इन युवाओं को मार्गदर्शन और मदद की आवश्यकता होती है, नही तो वे पढ़ाने के नाम पर कापी करवाने और रटवाने में लग जाते हैं। पर यह स्कूल बंद होने का समय पता कुछ नयी बातों को सीखने के लिये अच्छा रहा है। अब हमारा एक उद्देश्य गरीब बस्तियों में माता-पिता को घर पर सीखने का माहौल बनाने में मदद करना है। साथियों ने मातोओं के समूहों बनाये और बच्चों को नियोमित घर पर पढ़ाने की आवश्यकता को समझाया। इसलिए, कई महिलाओं ने अपने बच्चों के लिए घर पर पढ़ाई का एक नियमित समय निर्धारित किया है। 

माताओं के सीखने के लिए अगली बात यह है कि बच्चों को पढ़ाई में कैसे मदद की जाए। यह अधिक कठिन था,क्योंकि माताओं में आत्मविश्वास की कमी है। लेकिन हम ने पाया था कि शिक्षकों को अपनी शिक्षण सामग्री स्वंय बना कर पढ़ाने में बहुत मज़ा आता है। कुछ ऐसा ही हमने माताओं के साथ करने का फैसला किया। और प्रारंभिक प्रयास से कुछ अच्छे नतीजे आने लगे हैं। स्रोत व्यक्तियों की मदद से महिलोओं ने मिल कर अक्षर और शब्द-कार्ड और खेल बनाये, जिसे वे घर पर उपयोग कर सकती हैं। इस में महिलोओं को बहुत मज़ा आया और बहुत सी महिलायें इसमें शामिल होना चाहती थी। कई लोग अपनी साक्षरता को भूलने लगे थे और अब इसे पुनर्जीवित करना चाहते थे। इस काम को आगे बढ़ाने की कोशिश चल रही है। 

माता-पिता के सीखने के लिए एक और ज़रूरी बात यह है कि अपने बच्चों की प्रगति को कैसे पहचानें। कक्षा 2 या 3 में बेटी ने क्या सीखा है? क्या वह अच्छी प्रगति कर रही है? मैं उसकी आगे सहायता कैसे करूं? ये कुछ बातें हैं जिनकी चर्चा हम आपसे आगे करेंगे।...और आशा है आप भी अपने अनुभव हम लोगों से यहां पर शेयर करेंगे। मुख्य उद्देश्य माता-पिता और समुदाय को इन बातों में अधिक स्वतंत्र और सक्षम बनाना है ओर स्कूली पढ़ाई को मज़बूत करना है। यदि आप भी बच्चों के सीखने में कुछ प्रयास और प्रयोग कर रहे हैं, तो ज़रूर बताएं। हम भी आजमाएंगे और आपसे सीखेंगे। 

(भोपाल की हमारी वर्तमान टीम में किरण, मुमताज, भारती, संजू, सुनील,शुभी, शिवानी, शारदा, ऋषिका, सना, नीमा )

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