बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए शिक्षक और पालकों की एक साझी कोशिश

एसएमसी बैठक लीमडी फ़ालिया

ह एक निर्विवाद सत्य है कि समाज बच्चों की शैक्षिक उपलब्धि में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शिक्षा का अधिकार  कानून, 2009 जो कि शिक्षा में समुदाय की भागीदारी बढ़ाने हेतु प्राथमिक और माध्यमिक शालाओं में शाला प्रबंधन समिति बनाने की वकालत करता है । इस सत्य को धरातल पर कानूनी अमलीजामा पहनाने में सफलता मिली हैं। एसएमसी में मुख्य तौर पर शाला में दर्ज बच्चों के पालक और जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि होते हैं, जिनसे यह अपेक्षित होता है कि वे विद्यालय के दिन प्रतिदिन के कामों में शिक्षक के साथ सहभागिता करेंगे। झाबुआ जैसा क्षेत्र जो मानव विकास सूचकांक के हर पैमाने पर नीचे हो वहां ऐसी उम्मीद को गहरा झटका लगता है।

एसएमसी को सक्रिय करने के लिए यह जरूरी है  कि शिक्षक और समाज सेवी संस्थाएं उनमें आत्मविश्वास का संचार करें इस लेख में ऐसे ही एक शिक्षक की कोशिशों को हम उकेर रहे हैं।
झाबुआ जिले के रामा विकासखंड के प्राथमिक शाला लिमडी फलिया भुरा डाबरा में पदस्थ सुनीता चंगोड शाला प्रबंधन समिति को अपने कार्य में बाधा के तौर पर न देखकर उनका इस्तेमाल अपनी शाला में बच्चों के लिए सुविधाएं बढ़ाने में कर रही हैं। सुनीता ने सन 2009 में लिमडी फलियां की शाला में पदभार ग्रहण किया, इसी साल सरकार शिक्षा का अधिकार अधिनियम लेकर आई जो बच्चों की शिक्षा के साथ ही शाला प्रबंधन में समुदाय की भूमिका को रेखांकित करता है।
     समुदाय से जुड़ने के लिए सबसे पहला कार्य सुनीता ने अपने विद्यालय तक जोड़ने वाले रास्ते से  किया। शाला के इर्द-गिर्द और सड़क पर मिलने वाले माता-पिता और ग्रामीणों को सम्मान के साथ नमस्ते राम-राम, श्याम-श्याम कह कर उन्होंने ग्राम वासियों को अपने बराबरी की भावना को महसूस कराया। अगला कदम था ग्रृह संपर्क जहां वह लोगों के साथ बैठती उनसे खेती-बाड़ी और परिवार की बातें करती और उनके सुख-दुख को सुनती धीरे-धीरे वह उनसे शिक्षा के मुद्दे पर भी बात करने लगी। समुदाय को शिक्षा का अधिकार  कानून के अंतर्गत दिए  अधिकार और कर्तव्यों के बारे में खुलकर बताने लगी । इससे समुदाय को यह समझा पाने में सफल रही की शिक्षा ही एकमात्र ऐसा साधन है जो उनकी आने वाली पीढ़ी को गरीबी के कुचक्र से निकाल सकती है।
झाबुआ के लोग खेती का काम खत्म होने पर मध्यप्रदेश और गुजरात के बड़े शहरों में काम के लिए  जाते हैं, सुनीता का समाज से जुड़ाव इस वक्त काम आया पालक उनके कहने पर अपने बच्चों को बडे दादा-दादी के पास  घर पर छोड़ कर रोजी-रोटी के जुगाड़ में निकलने लगे। उनके बच्चे नियमित स्कूल आने लगे, जो बच्चे नहीं आते शिक्षिका उनको समझाने और बुलाने उनके घर तक हो आती।
    लिमडी फलिया में हर माह एसएमसी की बैठक होती है।  सुनीता के लिए खुशी की बात यह है कि पालक खुद बैठक बुलाने के लिए उनको याद दिलाते हैं। इन बैठकों से सकारात्मक परिणाम भी आए हाल ही में एसएमसी ने निर्णय लिया कि हर पालक स्कूल के बरामदे के लिए 300 रुपये  जमा करेंगे, इसके पहले पालकों ने 10 रुपये बच्चों की स्वच्छता के लिए भी जमा किए थे। सिर्फ रकम जमा करने से वह संतुष्ट नहीं होते बल्कि उसकी निगरानी भी करते हैं और राशि के इस्तेमाल पर शिक्षक से चर्चा भी करने लगे ।
सुनीता का नेतृत्व उन निराशा वादियों के लिए एक जवाब है जो मानते हैं कि सिर्फ पढ़े-लिखे पालक ही शाला प्रबंधन में भूमिका निभा सकते हैं। बिना पढ़े पालकों के  भी विचार महत्वपूर्ण है क्योंकि वह भी अपनी आने वाली पीढ़ी को गरीबी मुक्त और खुशहाल देखना चाहते हैं। बस जरूरत है तो सुनीता जैसों से प्रेरणा लेने की,  समुदाय के साथ आत्मीय संबंध बनाने की, जोकि तभी संभव है जब हम सामाजिक संरचना द्वारा प्रदत अधिक्रम छोटे- बड़े  को अपने अंतर्मन से निकाल उनके साथ व उनके बीच बैठें।

लेखन- विकास कुमार
ब्लॉक - रामा, जिला- झाबुआ  म.प्र. 


Comments